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________________ ( ६४३ ) नहीं जा सकता, उन मर्यादाके भीतर ही उसकी अमुक काम करने न करने. उल्टा करने की स्वतन्त्रता है" यहां यह तो माना गया है कि जीव कम करने में स्वतन्त्र है भी और नहीं भी, अब यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होला है कि ग्रह कैसे जाना जाय कि जीव किस काम में स्वतन्त्र है और किसमें परतन्त्र । अापने एक चोरी का धान्त दिया है अर्थात आपने लिखा है कि जीव चोरी करने में स्वतन्त्र है । परन्तु यह बात बिलकुल गलत है। क्योंकि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि चारी करनेवाले स्वभाववश होकर चोरी आदि करते हैं। उनके शरीर की आकृति श्रथवा बनावट से भी ज्ञान हो सकता है कि यह चोर प्रकृतिका मनुष्य है । हस्तरका विज्ञानसे भी इस छाप्तक! पता लग सकता है कि यह चोरी आदिके स्वभाव बाला है अथवा ईमानदार है। हम इस विषयका संक्षेपमें वर्णन करते हैं। (१) जिसका हाथ बहुत छोटा होकर जाड़ा (कठोर) मांसयुक्त हो वह प्रायः चारी का काम करने वाला होता है। (6) कनिष्ठिका अंगुली के तीसरे पर्व पर कुछ देदी यांकी रेखाएं होकर क्रासका चिन्ह बनाती हो तो भी चोर सिद्ध होता है । (३) बुधका पर्वत ऊंचा उठा हुआ होकर छोटी अंगुली की नोक मांसमय और मोटी हो। इनका और जीव का वियोग होता है और उस समय ये शरीर वापिस जाकर प्रकृति के उन्ही अंशो में मिल जाते हैं, जहां से नाये थे।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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