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________________ ( ६३० ) होती हैं, जिनका प्रभाव जातियों, कुलों तथा राष्ट्रों पर पड़ता है । इसका नाम कर्मफल देनेकी विधि है । हम अपने जीवन में नित्य प्रति देखते हैं कि किसी से राग हो जाता है. किसी से द्वेष हो जाता है. कोई हम से प्रेम करता है. कोई घृणा. कोई नुक्सान पहुंचाने का प्रयास करता है तो कोई सहायता पहुंचाता है । सहसा किसी को देख कर हमारे मन में सद्भावनाएँ उत्पन्न होती है और इच्छा होती है कि इससे मित्रता करें । इसी प्रकार किसी को देख कर खामखां नफरत हो जाती है । यह सब पूर्वोपाजित कर्मा का परिणाम है। जो हमारे अन्दर ( फल देने और दिलाने के लिए) अनेक प्रकार की बुद्धि उत्पन्न कर देता है । कर्मफल और दर्शन भारतीय दर्शन में तीन दर्शनों का ऊंचा स्थान है । १ - जैनदर्शन, २ - बौद्धदर्शन, ३ – वैदिकदर्शन | इनमें से जैनदर्शन और बौद्धदर्शन इस बात में एक मत हैं कि कर्मों का फल प्रदाता कोई ईश्वर- विशेष नहीं हैं। रह गया वैदिक दर्शन उसके छह विभाग हैं १ सांख्य, २ योग, ३ मीमांसा वेदान्त, ५ न्याय, वैशेषिक। इनमें से सांख्य और मीमांसाकार ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करते इस लिए वे भी कर्मो का फल स्वयं कर्मों द्वारा ही प्राप्त होता है इस बात के समर्थक हैं । सां दर्शन का मत है कि लिंग शरीर बारंबार स्थूल शरीर को धारण करता है तथा पूर्व देह को त्यागता रहता है । सांख्य परिभाषा में इस का नाम संसरण हैं। सांख्य कारिका ४५ में लिखा है "नवन् व्यवतिष्ठते लिनम्" जिस प्रकार अभिनेत्री कभी राम कभी रावण कभी स्त्री कभी पुरुष, कभी राजा ?
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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