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________________ . A ( ४५ ) पड़ने वाले नाम हैं । तैत्तिरीया हर एक देवता को एक खास नक्षत्र के साथ जोड़ता हैं । उदाहरण के लिये जब रुद्र का वर्णन हो तो समझना चाहिये कि वह आर्द्रा का सूर्य है । जब कि बादल उमड़ते हैं, बिजली कड़कती है और मूसलाधार मेह बरसता है। इसी प्रकार जब पूषा का वर्णन हो तो समझना चाहिये कि यह रेवती नक्षत्र का सूर्य है। इस अति इविषा नक्षत्र का सूर्य है। सोम, मृगशिर का अदिति, पुनर्वसु का । बृहस्पति, पुष्याका सर्प श्लेषों का पितर मघाका भग पूर्व फालगुनी का । अर्यमा, उत्तर फालगुनीका । सविता, हस्ता का । त्वष्टा चित्राका । चायु, स्वाती का इन्द्राग्नि, विशाखाका । मित्र, अनुराधा का । इन्द्र ठाका । निर्ऋति, मूलाका । श्रपः पूर्वाषाढ़ का | विश्वे देवा. उत्तराषाका विष्णु श्रशाका | वसुगण घनिष्ठा का | शतभिमका अजरकपाद, पूर्व भाद्रपदाका । श्रहिबुन, उत्तर भाद्रपदाका । अश्वी अश्वनीका यम भरीका | राय बहादुर, दिनेश चन्द्र सेन, डी० लिट I I पुरातत्वविद की सम्मति आय के प्राचीन आकाश का देवता ' श्रीकोंके 'जियास' और रोमनों के freeर' अथवा 'जुपिटर' और जर्मनों के 'सिंह' एक ही देवता हैं। हिन्दू आर्यों के 'ब' और ग्रीकों के 'हरास' एक ही है। इसी प्रकार भिन्न पर बहुतेरे देवताओं के नामों में समानता भाषाओं को टूटने मिलेगी ।" वैदिक भारत १०५ “जल वायु अग्मि, और पृथ्वी आदि नैसर्गिक शक्तियों के उपासक कुछ ऋषि लोग अपने देवताओं को महत्व देना चाहते
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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