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________________ ( ४४ ) 'एष ब्रह्मे इन्द्र:' इत्यादि मन्त्रों से सर्व प्राणियों के आत्म स्वरूपत्य का उपक्रम कर उसका 'अच्च स्थावरम् इत्यादि मात्र द्वारा उपस ंहार करेगी ।" आपने भी यहां सूर्य का अर्थ ईश्वर नहीं किया है, अपितु मंडलास्थित जीव किया है। तथा च 'नीति मंजरी' में भी सर्वातु क्रमण का ( एकैव महानात्मा देवता ) या लिख कर लिखा है कि "कीदृशं तू अत्र मोचितम् । सूर्य पूर्व स्वर्भानुना असुरेश यत्रस्त व्यासीत् तमन्ये ऋषयः मोषयितु ं न शकाः ततोऽत्रिभिचिताः । तथा ब्राह्मणे, स्वर्भानु-ई आसुर आदियं तममा विध्यत् अस्मिन्नर्थे ऋक् (५४०५ ) यच्च सूर्यtana earer farदासुरः ॥" अर्थात- "एक ही महानात्मा देवता है, जिसको सूर्य कहते हैं। अन्य सब देवता उसकी विभूतियां हैं। कैसा है, यह सूर्य, त्रिविमोचित है। अर्थात् असुरों ने इसको अंधकार से अच्छादिस कर लिया था तब अत्रि वंशियों ने इसको मुक्त किया था यही ब्राह्मण में लिखा है तथा यही ऋग्वेद में है।" यहां ब्राह्म तथा वैदिक प्रमाणोंसे यह सिद्ध कर दिया गया है कि यहां सूर्यका अर्थ यह प्रत्यक्ष जब सूर्य ही है. ईश्वर नहीं । राशियां और सूर्य वेदांग ज्योतिष में २७ राशियों के ( जिनमें उत्तर कान्ति वृत्तविभक्त है ) २७ नक्षत्र देवताओं अथवा अfire देवों का affa हैं। ये सत्ताइसों देवता सूर्य के २७ विभिन्न नक्षत्रों में पहुंचने पर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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