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________________ ( ६२६ ) शरीर पर पड़ता है. वहाँ दूसरोंकी आत्मा और शरीर पर भी पड़ता है। जैसे हम किसी की प्रशंसा करते हैं तो यह प्रसन्न होता है और उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। यह हमारे शब्दों का दूसरों पर प्रभाव पड़ा। इसी प्रकार गालियाँ आदि का भी बुरा प्रभाव क्रोधादि उत्पन्न कर देता है। जिस प्रकार हमारे विचारोंका भी दूसरों पर प्रभाव पड़ता है । स्थूल दृष्टि से चाहे हम उसे भले ही न जान सकें । परन्तु आज मनोवैज्ञानिकों ने हस्तामलक की तरह सिद्ध कर दिया है और हम अपने जीवन में भी इस प्रकार के सैंकड़ों सवार देखते हैं । परन्तु उन पर हमारी दृष्टि नहीं जाती । इतिहास में भी इसके कम उदाहरण नहीं है । विभीषण रामचन्द्र जी से प्रेम करता था इसी लिये रामचन्द्र जी भी उससे प्रेम करते थे। जिस समय रावण से पृथक होकर वह रामचन्द्रजी की सेना में आया उस समय सभीके हृदयमें यह भाव उत्पन्न हुये कि यह कोई गहरी चाल हैं । परन्तु रामचन्द्रजी ने उसे गले से लगा लिया। इसी तरह भीष्म और द्रोणाचार्य का प्रेम पाण्डवों पर था तो पाण्डवोंकी भी हार्दिक श्रद्धा उन पर थी । एक प्रान्त भी लीजिये किसी समय एक राजा बीमार हुआ. बड़े बड़े बैद्य, डाक्टर उसके इलाज के लिये बुलाये गये, परन्तु अन्तमें सब निराश होगये उन्होंने कह दिया कि यह राजा कल मर जायेगा | पर विधि का विधान, दूसरे दिन वह नहीं मरा और उसी दिन से उस की तबियत अच्छी होने लगी और कुछ दिनों में वह अच्छा चंगा होगया | एक दिन राजा की सवारी निकली. राजा ने एक बनियेको देख कर अपने वजीर से कहा, वजीर ! तुम इस आदमी को अपने देश से निकाल दो। बजीर ने सोचा राजा साहब बीमारी से उठे हैं. इस लिये ऐसा कुछ खयाल हो रहा है । मन्त्रीने उस पर विशेष
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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