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________________ -- - - - - - कर्म देव बनते हैं। इसलिये श्राजानज' देव कम देवों में निकृष्ट हैं. तथा कम देवों से सूर्य आदि देव श्रेष्ठ हैं। इन सूर्य आदि ३३ देवों का स्वामी इन्द्रदेव है. तथा इसका प्राचार्य बृहस्पति है। अभिप्राय यह है कि एक तो कर्म देवता हैं जिनको देवयोनि कहते हैं. उनके दो भेद है एक स्मातकोत्पन्न और दूसरे श्रोतकोत्पन्न । नथा अन्यदेव सूर्य आदि ३३ देव हैं जिनकी स्तुनि श्रादि वेदों में की गई है। "साध्यदेव” इनसे पृथक साध्यदेव होते हैं। अर्थात् जो देव बनने के लिये प्रयत्न करते हैं वे योगी आदि साध्यदेव कहलाते हैं। यजुर्वेद अ० ३१ । १६ के भाष्य में प्राचार्य उवह ने लिखा है कि एवं योगिनोऽपि दीपनाद् देवाः, योन समाधिना नारायणाख्यं झानरूपम् भयजन्त । तथा च प्राणाचे साध्यादेवास्त एतं (प्रजापति) अन एवमसाधयन् ॥ श०१०।२।२।३ इस प्रकार साध्य देव का अर्थ योगिनः किया है। श्रथया प्रारस का नाम साध्य देव है, क्योंकि उन्होंने प्रजापति को सिद्ध किया था। अर्थात् प्राणायाम श्रादि तप के द्वारा प्रजापति पर प्राप्त होता है। तथा च निरुतकार कहते हैं कि "साध्या देवाः । साधनात् । युस्थानोदेवगण इति नरुक्ताः । पूर्व देवयुगम् इति पाख्यानम् । अर्थात् साधनासे माध्यदेव हैं । एवं शुस्थानीय देवगण साथ्य
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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