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________________ ५-पांचवां, सब पदार्थोंको अनित्य मानना है । ६- छठा, पांच भूतोंके नित्य होनेसे जगत्को नित्य मानता है। -सातवां, सब पनार्थीको पृथक • मानता है, मूल एक नहीं । ६-अाठवां, कहता है कि एक दूसरेमें एक दूसरका प्रभाव होनेसे सबका अभाव है ।। इसमें न्याय, शेषिक, मीमांसा, वेदान्त, सांख्य आदि सबको नास्तिककी उपाधि दे दी गई है । वेदान्तको चतुर्थं मास्तिक कहा गया है। अभिप्राय यह है कि प्रत्येक समुदायकी तरह, आर्यसमाजने भी एक शब्द नास्तिक ले लिया है और अपने घेरेसे बाहरके सब व्यक्तियों को वह भी ( मुसलमानादि की तरह ) नास्तिक कहता है। इसी प्रकार उसको अन्य सब नास्तिक कहते हैं । मार्थाः समाजकी अनि सब नास्तिक हैं, तथा सबकी दृष्टि में कह नास्तिक हैं। यही अवस्था अन्य मत वालों को है। इन बातोंको भी न छेड़े और इस पर तात्विक विचार करें तो . भी इन शब्दों में कुछ सार नहीं है । यथा-- वेद निन्दक मनु कहते हैं कि ( नास्तिकोवेद निन्दकः ) अर्थात् जो वेदकी निन्दा करता है, वह नास्तिक है । अब विचार यह उत्पन्न होता है कि वेद क्या है तथा उनकी निन्दा क्या है ? ___ सनातन धर्मके अनुसार वेदोंकी ११३१ शाखाये तथा प्रामणआदि सम्पूर्ण ग्रन्धवेद हैं. और स्वामीजी केवल चार शाखाओं को वेद मानते हैं । तथ ११२७१ शाखाओंको तथा अन्य श्राह्मण अन्थोंको वेद नहीं मानते रूप निन्दा करनेसे स्वामीजी प्रथम श्रेणी के नास्तिक सिद्ध होते हैं। क्योंकि नास्तिकः नास्तिक मतिर्यस्य' इसके अनुसार ब्राह्मणादि ग्रन्थ वेद नहीं हैं ऐसी बुद्धि वाला
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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