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________________ यो संक्षेपमें आस्तिक-नास्तिक शझोंको समीक्षा, दार्शनिक पद्धतिसे विचार करने पर, वेदसे लेकर आधुनिक काल पर्यन्त संस्कृत वाङमय महावि द्वारा सिद्ध होती है । इत्यलमति प्रपञ्चे नेति विरम्यते । सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वेसन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तुपाकश्चिदुःखभाग्भवेत् ॥ नास्तिक कौन है ? नास्तिक, काफिर, मिथ्यात्वी, आदि ऐसे शब्द हैं जिनका व्यवहार प्रत्येक सम्प्रदाय दूसरोंके लिये करता है। प्रत्येक भुसलमान ईसाई, हिन्दु यहूदी आदिको तो काफिर कहता ही है. अपितु गक मुसलमान दूसरे मुसलमानको भी काफिर कहता है, यथा शिया सुन्नियोंको काफिर कहते हैं और सुन्नी शिया लोगोंको। इसीप्रकार कादियानियोंको भी काफिर कहा जाता है। इसी प्रकार मिथ्यात्वी शब्दकी अवस्था है। नास्तिक शब्दका भी विचित्र हाल है । सब सनातनी श्रार्य समाज च स्वामी दयानन्दजीको नास्तिक कहते है तथा आर्य समाज सबको नास्तिक कहता है। सत्यार्थ प्रकाश पृ० २१७ से १६ तक पाठ नास्तिक गिनाये हैं। उनमें सथ दशनकारोंको नास्तिक लिखा है । यथा-- ५.-प्रथम नास्तिक. शून्य ही एक पदार्थ है सृष्टिके पूर्व शून्य था और आगे शून्य होगा। २-दूसरा, अभाषसे भागको उत्पत्ति मानता है (यह असस्कार्य वादी न्याय और पैशेषिक हैं। ३-तीसरा, कर्मके फलको ईश्वराधीन मानता है। ४-चौथा, फर्मके लिये निमित्त कारणकी आवश्यकताको नही मानता है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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