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________________ नहीं है? इस बातको बड़े गर्वसे शङ्कराचार्यजीने द्वितीय अध्याय के तर्कवादके ग्यारहवें और बारहवें सूत्रके भाष्यमें "न हि प्रधानवादी सर्वेषां ताकिंकाणांमध्ये उत्तम इति सर्वस्तार्किको परिगृहीतः बेनतदीयं मत सम्यग्ज्ञान मिति प्रति यद्यमहि". "वैदिकस्य दर्शनस्य प्रत्यासन्नत्वाद् गुरुतर्क विलेपत्वात" सभी नैयायिक तार्किक दार्शनिकोंमें प्रधानवादी ही उत्तमतार्किक है. ऐसा सभी तार्किकों ने मिलकर उसे सर्टिफिकेट नहीं दिया है। जिमसे हम वैदिक दार्शनिक ऐसा मान लें कि उसका कथन अच्छा है। सांख्यदान नैनिकके बहुत बळ माम मारता है। और बड़ी युक्तियों के बल पर वह खड़ा होता है इसीसे हमने उसे पूर्व पक्षियोंमें प्रधान स्थान दिया है इत्यादि । वाक्यों द्वारा, जहां कहीं भी मौका मिला है सभी दार्शनिकों को वैदिक श्रेणीसे बाहर निकाल करनेका ही प्रयत्न किया है । ये नैयायिक प्रभृति भी अपने अपने दर्शनको तर्क कसौटीपर अधिक कसनेका प्रयत्न करते हैं । हां जहां कहीं अबसर पाकर श्रुतिके अर्थीको केवल अपने मतके समर्थनमें खींच-खींचकर लगा देते हैं। ये दाशनिक सर्वदा श्रुति के आधीन नहीं चलते । सो भी आगेके टीकाकारोंकी ये बातें हैं, मूल सूत्रकारों के विषयमें तो ऊपर कहाही गया है कि ये लोग प्रस्थान-भेदसे 'शास्त्रा-रुन्धती' न्यायके अनुसार वेदके दार्शनिक अंगके एक एक पहलू लेकर अपने दर्शनोंका उपन्यास करते हैं। असे नैयायिक और वैशेषिक दोनों मिलकर आरम्भवावका, कपिल और पतञ्जलि परिणामवादका, चारों बौद्ध संघातवादका एवं वेदान्ती विवर्तवादका
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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