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________________ (५७६ ) निघदमे प्रतीत होता है जब नचिकेता यमसे तीसरा वर मांगता है तब यही कहता है कि - "येयं प्रतेविचिकित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तितिचेंके। एतद्विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहं वराणामेष वरस्तृतीयः ॥" अर्थान्–मरनेके पश्चात् आत्मा रहता है, ऐसा एक आस्तिक पक्ष वाले कहते हैं. नहीं रहता है ऐसा दूसरे नास्तिक पक्षवाले कहते हैं। हे यमराज? मैं आपके द्वारा अनुशासित होकर यह जान जाऊं कि इन पक्षों में कौन पक्ष ठीक है ग्रही उन वरोम से तीसरा वर हैं " इत्यादि । इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि वैदिक काल में परलोक मानना न मानना ही आस्तिक नास्तिकका व्यावहारिक अर्थ था। मनुने नो वेदकी निन्दा करने बालेको नास्तिक कहा है। (नास्तिको वेदनिन्दक:) औरभी, पाणिनीय सूत्रोंमें ईश्वर शब्दका प्रयोग -'अधिरीश्वरे १४६७ स्वामीश्वराधिपतिः २।३।२६.यस्मादधिकं यस्यचेश्वर वचनं तत्रसप्तमी २६।६। ईश्वरतोसुनकसुनौ ३।४ १३ तस्येश्वरः ६।११४२ इत्यादि सूबोंके उदाहरणों में ईश्वर शब्द स्वामी अर्थमें ही प्रयुक्त होता है। पतंजलीके उदाहरणों में ईश्वरका अर्थ राजाभी पाया जाता है जैसे--- 'तत्यया लोक ईश्वर आज्ञापयति प्रामादस्मान्मनुष्या अानीयन्तामिति । राजा आज्ञा देता है कि इस गोवसे मनुध्योंको ले जाओइत्यादि उदाहरणासे ईश्वर शब्दका राजा अर्थ होता है। इस अवस्थामें ईश्वर शब्दके परमेश्वर अर्थमें प्रयुक्त होनेसे पहले ही दर्शन सिद्धान्तोंके अाविष्कता दार्शनिकों की इष्टिमें ईश्वर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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