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________________ (३) न्याय और वेश षिक स में कहीं भी ईश्वरक गुणोंका कथन नहीं है । यदि ये दर्शन ईश्वरकी सत्ता मानते होते तो जिस प्रकार अन्य द्रव्यों सामान्य व विशेष गुणोंका कथन किया है इसी प्रकार ईश्वरके गुणोंका भी होना चाहिये था । वादके विद्वानोंने ईश्वरके पाठ गुण माने हैं। उनमें पांच सामान्य और तीन विशेष गुण । सामान्यगुण विशेषगुण (१) संख्या (१) बुद्धि (२) परिमाण (२) इझया (३) पृथक्त्व (३) प्रयत्न (४) संयोग (५) वियोग किन्तु सूत्रकारोंके मतमें ये तीनों ही विशेषगुण औपाधिक और नाशवान हैं। इससे भी यह सिद्ध होता है कि सूत्रकार ईश्वरको नहीं मानते थे। () कारण और कार्य नैयायिकों ने तीन प्रकार के कारण माने हैं। एक समवायिकारण (२) असमवायिकारण [३) निमित्त कारण। इनमें समयायि कारण तो द्रव्य होता है. इसको हम उपादान कारण भी कह सकते हैं । तथा असमवायि कारण गुण औरकर्म होते हैं। अतः दोनों कारणों में से ईश्वर है महीं अब शेष रहजाता है निमित्त कारण, ईश्वरको जगतका निमित्तकारण ही माना जाता है। यह निमित्त कारण भी दो प्रकारका है एकमुख्य दूसरागौण । जैसे कुम्हार घटका मुख्यानिमित्तकारणहै तथा दण्डचक्र आदि गौण
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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