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________________ मुक्तये सर्वजीवानां यः शिलात्वं प्रयच्छति, स एको गौतमः प्रोक्न: उलू कश्च तथापरः । वरं वन्दानेऽरण्ये शृगालत्वं भजाम्यहम् , न पुनशेषिकी मुक्ति प्रार्थयामि कदाचन ।। जो मुक्ति के लिये सब जीवोंको पत्थर बनता है वह एक तो गोतम (बैल) है और दूसरा उलूक (उल्लू ) है । वृन्दावनमें मैं शृगाल आदि बनकर रहना पसन्द करूंगा परन्तु वैशेषिककी मुक्तिकी कभी अभिलाषा नहीं करूंगा । इस जड़यादी दर्शनमेंसे भी ईश्वर भक्तोंने ईश्वरको निकालने का प्रयन किया है, उनका कथन है कितानाहानामा प्रामारपण ! में सू० ११३ इस सूत्रमें ईश्वरका कथन है क्योंकि इस सूत्रका अर्थ है नन् अर्थात उस ईश्वरका वचन होनेसे वेद प्रामाणिक हैं । हमें बह नियम ज्ञात नहीं जिसमें यह बताया गया है कि जहां जहां, स. या तत् , श्रादि शब्द आवे वहां वहां उनका अर्थ ईश्वर करना चाहिये । बदि ग्रह, नियम नगा आविष्कृत हुआ हो तो उसको प्रकाशित कर देना चाहिये । ताकि इससे जनता लाभ उठा सके। यदि ऐसा कोई नियम इजाद नहीं किया गया है तब तो यहां तत् , शब्दके अर्थ ईश्वर करना अपनी महान अज्ञानता प्रगट करना है, क्योंकि इससे पूर्व के सूत्र में धर्मका लक्षण किया गया है, यथायतोऽभ्युदय निःश्रेयससिद्धिः सधर्मः ।। बैं० २०१२ उसीका आगे कथन है कि तद्अचनाद् अर्थात् यस धर्मका (जिसका पूर्वसूत्रमें लक्षण है) बचन होने से ही शास्त्र प्रमाण है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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