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________________ । ५३७ ) वर्तमान मान्यताके अनुसार सृष्टिकर्ता आदि गुणों वाला नहीं है, अपितु मुक्तिके लिये अवलम्बन मात्र है। मुक्त आत्मा ही योगमतका परमात्मा है. यह हम पूर्व योगके कथनमें दिखला चुके हैं श्रीमान लोकमान्य बाल गंगाधर जी तिलकने अपने गीता रहस्यमें स्पष्ट लिखा है कि “सांख्योंको छैनवानी अर्थात् प्रकृति और पुरुषको अनादि मानने वाला कहते है। वे लोग प्रकृति और पुरुषके पर ईश्वर. कालस्वभाव, या अन्य मूल तत्वको नहीं मानते। इसका कारण यह है कि यदि ईश्वर आदि सगुण हैं, तब तो उनके मनानुसार वे प्रकृतिसे उत्पन्न हुए हैं। और यदि निगुण मानें तो निर्गुण से सगुणा पदार्थ कभी उत्पन्न नहीं होता।" गीता रहस्यमें ईश्वरकृष्ण रचित सांख्य कौमुदीका एक ऐसा श्लोक भी लिखा है जो प्राचीन पुस्तकों में था परन्तु बादमें किसी ईश्रर भक्तने निकाल दिया था। वह निम्न प्रकार है। कारणमीश्वरमेके ब्रुवते कालं परे स्वभावं वा । प्रजाः कथं निर्गुणतो व्यक्तः कालः स्वभावश्च ।। इस श्लोकमें तीनों कारणोंका स्पष्ट स्त्रए उन किया है। इस विषयमें गीता रहस्य अधिक सुन्दर ग्रन्थ है । वर्तमान सांख्य दर्शन से यह सांख्य तत्व कौमुदी' बहुत प्राचीन है और सांख्यों का वास्तविक अन्य यही है । ऐसा सभी विद्वानों का मत है । अतः सांख्यकार निरीश्वरवादी था यह सिद्ध है । . साँख्य और संन्यास जहां सांख्य वैदिक क्रिया काण्डका विरोधी था वहां सांख्य संन्यास का भी विरोधी था । शान्ति पर्व अ.. ३२० में लिखा है कि धर्मराज जनक पंचशिस्त्राचार्य का शिष्य था उसका और
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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