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________________ ( ५३३ ) २५ कर दी। महाभारत तथा गीताके स्वाध्यायसे पता चलता है कि उस समय भारतवर्षमें सांख्य मतकी दुन्दुभी बज रही थीं, इसलिये शायद योगमत वालोंने भी इन तत्वोंको स्वीकार कर लिया हो, तथा उसमें आत्माके दो भेद करके २६ भेद माने गये हो । वास्तवमें न्योगमतके २५ या २६ नत्वोंकी प्रसिद्धि नहीं है। पुराणादि अन्य किसी अन्धसे इसकी साक्षी भी नहीं मिलती। सांख्य वेद विरोधी था महाभारतके शान्ति पर्व अध्याय २६८ में गाय और कपिल को एक कहानी लिखी है ! उस समय गोंमें गोबध होता था. गौ ने आकर कपिलसे रक्षाकी प्रार्थनाकी उन्होंने अपना स्पष्ट मत घोषित किया कि वाहरे वेद ! तेरी भी अजय लीला है तूने हिंसा कोही धर्म कह दिया है। प्रतीत होता है उन्होंने इसके विरुद्ध प्रचार भी किया होगा । सम्भवतः प्रामाणोंने इसीलिये इसका नास्तिककी पश्वी दी होगी। वहां स्पष्ट लिखा है कि हिंसा धर्म नहीं हो सकता चाहे वह श्रुतिमें छी क्यों न लिखा हो । ईश्वर और सौख्य सांख्यमत प्रारम्भसे ही ईश्वरका विरोधी है। महाभारत शान्ति पर्ष अ. ३०० में सांख्यवादियों और योग मागियोंके शास्त्रार्थका उल्लेख है । उसमें लिखा है कि योग वाले कहते थे कि ईश्वर है तथा सांख्य वाले कहते थे कि ईश्वर नहीं है, योगी लोग कहते थे कि यदि ईश्वर नहीं मानोगे तो मुक्ति कैसे होगी। सांख्या: सांख्य प्रशंसन्ति योगा योग द्विजातयः । अनीश्वरः कथं मुच्चेदित्येवं शत्र कर्शनः ॥३॥ यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि योगियों का ईश्वर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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