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है। और वह ईश्वर योगी के लिये एक अबलम्बन मात्र है। तथा यह भी स्मरण रखना चाहिये, कि इस योग सूत्र के कर्ता वे ही पतंजलि मुनि नहीं हैं, जो कि महाभाष्य के कर्मा हैं। क्योंकि महा भाष्य में कही भी ईश्वर शब्द का प्रयोग इस अर्थ में नहीं हुअर अतः यह पताञ्जलि अर्वाचीन व्यक्ति हैं।
सांस्य
भारतीय दर्शनों में सांख्य दर्शन का बड़ा महत्व पूर्ण उच्च स्थान है। इसके रचयिता महा मुनि कपिल है। इनका कथन वेदों में भी आता है।
१ दर्शनामेकं कपिल समानम् । १११६
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि सिद्धानां कपिलो मुनिः" अर्थान् सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ | अभिप्राय मह है कि सिद्धोंमें कपिल मुनि सर्व श्रेष्ठ हैं। अहियुध्न्य संहिता नामक ग्रन्ध में लिखा है कि कपिल त्रेता के आदि में हुचे (१० ५५) वहां आधान्सर तथा हिरण्यगर्भ और कपिल का वेता के प्रारम्भ में उत्पन्न झोना लिखा है कि इन्होंने वेद सभा सांख्य मार्ग एवं योग मार्ग को क्रमशः प्रचलित किया । यह प्रमाण कुछ अधिक मूल्य नहीं रखता । कारण यह कि प्रथम तो येही अत्यन्त विवादास्पद विषय है कि त्रेताका आदि कब था तथा तीनों ऋषियोंका एक साथ होना भी गलत है। तीसरी बात यह है कि यह पुस्तक नवीनतर है। संभवतः ईसासे बावकी यह रचना है। महाभारत सभापर्व अध्याय ७२ श्लोक ६ में युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें कपिल मुनि विद्यमान थे।