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________________ ( ५२३ ) मारकी श्यामता जिस प्रकार अभि संयोगसे नष्ट होजाती है उसी प्रकार अविद्या स्वाभाविक श्रविद्या भी ध्यानादि विलक्षण कारके योगसे नष्ट होजायगी ऐसा कहोगे तो मोदी पतितो दूर हो जायगीमगर एक ही श्रात्मा मानने वाले अद्वैतaratha आत्माके सिवाय ध्यानादि कोई विलक्षण कारणही नहीं है तो अविका उच्छेद कैसे होगी इस आपत्तिसे अद्वैतवाद नहीं टिक सकता इसलिए द्वैतवाद स्वीकार करना युक्ति संगत है। अद्ध तवाद के विषय में बौद्धोंका उत्तरपक्ष वापरात दर्शनं नित्यतोतिः । रूपशब्दादि विज्ञाने, व्यक्त मेदोपलक्षणम् ।। ( तै० सं३२६ एक ज्ञानात्मकत्वे तु रूपशब्द रसादयः । सकृद्वैतेः प्रसज्यंते नित्योऽवस्थान्तरं न च ॥ ( तै० सं० ३३० ) है अर्थ - पृथ्वी जलादिक अखिल जगत् नित्य ज्ञानके विवर्त्तप I और आत्मा नित्यानित्य रूप हैं । अतः नित्य विज्ञानके सिवाय दूसरी कोई वस्तु नहीं है । इसप्रकार कहने वाले वेदान्तियों का जो कुछ अपराध है उसको शान्तिरक्षितजी इस प्रकार दिखाते हैं - अहो अद्वैतवादियो ! विज्ञान एक और नित्य है । रूपरस शब्द आदिका जो पृथक २ ज्ञान होता है वह तुम्हारे मतसे न होना चाहिए किन्तु एक ज्ञानसे एकही साथ रूप रसादि सब पदार्थों का एकरूप से ज्ञान होना चाहिए अगर तुम ये कहोगे कि जिस प्रकार एक ही पुरुषमें बाल्यावस्था, तरुणावस्था वृद्धावस्था भिन्नर होती है । उसी प्रकार ज्ञानकी भी भिन्न अवस्थाएं होंगी जिससेरूप विज्ञान रसविज्ञान इत्यादि की उत्पत्ति हो जायगी तो यह कथन भी ठीक .
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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