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________________ ( ५१२ ) वेदान्त दर्शन में ईश्वरका खंडन निम्न प्रकारसे किया है। पत्युरसामञ्जस्यात् । अ० २२१३७ संवन्धानुपपत्तश्च ॥ ३८ ॥ अधिष्ठानोपपत्तेश्च ॥ ३४ ॥ करणवच्चेन भोगादिभ्यः ॥ ४०१ अर्थात्-ईश्वर जगतका कर्त्ता सिद्ध नहीं होता है क्योंकि यह युक्तिके विरुद्ध है । जीव और प्रकृतिसे भिन्न. ईश्वर विना सम्बन्ध के जीव और प्रकृतिका अधिष्ठाता नहीं बन सकता। इनमें संयोग सम्बन्ध नहीं बन सकता क्योंकि यह सम्बन्ध दो एकदेशीय पदार्थोंमें होता है । परन्तु ईश्वरको एक देशीय नहीं माना जाता । इनमें समवाय सम्बन्ध नहीं हो सकता क्योंकि इनमें मानय और आश्रयीभाष नहीं है । कार्य कारण सम्बन्ध तो अभी असिद्ध ही है । अतः इनमें किसी प्रकारका सम्बन्ध न होनेसे ईश्वर जगत रचना नहीं कर सकता ॥२८॥ अधिष्ठानकी सिद्धि न होनेसे भी ईश्वर कल्पना मिथ्या है । क्योंकि निराकार ईश्वर कुम्हारकी तरह (मिट्टी) प्रकृतिको लेकर जगत रचना नहीं कर सकता ३६।। यदि यह कहो कि कुम्हारकी तरह उसके भी हस्त पादादि हैं। नां उसका ईश्वरत्व ही नष्ट हो गया । वह भी कुम्हारकी तरह कर्म करेगा उसका फल भी भोगना पड़ेगा ।।४।। विज्ञ पाठक वृन्द यहां देख सकते हैं किस प्रकारकी प्रबल युक्तियोंसे जगतकर्ताका खंडन किया गयाहै । तथा अध्याय,पा०३ के प्रारंभ से ही श्राकाशादिको उत्पत्ति बताने वाली तथा उनका विरोध करनेवाली श्रुतिर्थीका समन्वय किया गया है । भाध्यकारोंने वहां पर आकाश. वायु, तेज, प्राण, आदिको नित्य बताने वाली
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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