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________________ ( ५११ । प्रमाण आदिसे वाधित ईश्वरका कथन विल्कुल नहीं है। ईश्वर सृष्टि कता है इसका तो सूत्रोंमें खंडन किया गया है। पमपुराणमें शंकर मतको प्रच्छन्न बौद्ध बताया गया है । तथा दर्शन दिग्दर्शनमें एक श्लोक दिया है। वेदोऽनृतो युद्धकतागमोऽनृतः। प्रामाण्यमेतस्य च तस्य चानृतम् ॥ घोद्धाऽनृती बुद्धिफले तथानृते । यूयं च चौद्धाश्च समान संसदः ॥ रामानुजके वेदान्त भाध्यको टीका' (श्रुतप्रकाशिकाम) अर्थात् ह शंकरमतानुयायों ? तुम्हारे लिये वेद असत हैं इसी प्रकार बौद्धा के लिये बुद्ध बचन असत्य हैं। तुम्हारे लिये वेदका तथा उनके लिये बुद्ध बचनोंका प्रमाण होना मिथ्या है । उसीप्रकार बुद्धि(मान) और उसका फल मोक्ष भी मिथ्या है । इस प्रकार तुम और बौद्ध समान हो अस्तु ग्रहां यह प्रकरण नहीं है अतः अन्न हम यह दिखाते है कि श्री शंकराचार्यजीने भी मृष्टि आदिको उत्पत्तिको केवल अथवाद ही माना है। ___तथा च 'महाभारत मीमांसा में रायसाहब चिन्तामणि लिखते हैं कि-'उपनिषदाम परब्रह्म वाचा आत्मा है : प्रात्मा और परमात्माका भेद उपनिषदोंको ज्ञात नहीं है।" अभिप्राय यह हेकि उपनिषदोंम निश्चयनयको इष्ट्रिसे आत्माका सुन्दर वर्णन किया गया. अतः निश्चयनयसे आत्मा और परमात्मा एक ही है। भेद ता कौके कारणसे है । वेदान्त दर्शन उपनिपदोंके भावोंको ही व्यक्त करने तथा उन्हें दार्शनिक रूप देनेके लिये लिया गया है । अतः उसमें भी मुक्तात्मासे भिन्न कोई जाति विशष अथवा व्यक्ति विशेष ईश्वर नहीं माना है । यह निश्चित है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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