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अर्थात् यहां शरीर के जन्म व मरण आदि का कथन है । इसी प्रकारः
शास्त्रयोनित्वात् ॥ ३ ॥
का अर्थ भी यह नहीं है कि जिससे ऋग्वेदादि उत्पन्न हुए हैं हा है। अपितु इसका अर्थ यही है कि 'शास्त्रं योनिः अस्य' अर्थात शास्त्र है योनि (कारण) जिसका यह श्रात्मा है। यहां शास्त्र उपलक्षण मात्र हैं, अर्थात् इससे अनुमानादि सभी प्रमाण गृहीत हैं। अभिप्राय यह है कि वह प्रमाणों से सिद्ध है। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि वह सम्पूर्ण भाषा व ज्ञान का कारण है। आत्माकी सिद्धि में ये दोनों हेतु बहुत ही प्रबल हैं। अतः इम बेदान्त के कुछ सूत्रों का वास्तविक अर्थ लिखते हैं।
अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ॥ १ ॥
अर्थ - - संसार की निस्सारसा जान लेने पर आत्म ज्ञान उपादेय है | ( अतः ) इस लिए ब्रह्म जिज्ञासा ब्रह्म-आत्मज्ञान की इच्छा करनी चाहिये ।
( प्रश्न ) सूत्र में ब्रह्म शब्द, ईश्वर परमात्मा, अझ बाधक है आपने इसका अर्थ "आत्मा" किस प्रकार किया है ।
(उत्तर) श्रुतिमें आत्मा ही लक्ष ईश्वर आदि नाम हैं यथा"अयमास्मा aar" ६०० २।४।१६
अर्थात् यह आत्मा ब्रह्म है सर्व साक्षी है ।
" आत्मापहतपाप्मा सोऽन्वेष्टव्यः "
"स विजिज्ञासितव्यः छा० ८२७११
जो आत्मा पापों से मुक्त है उसका अन्वेषण करना चाहिये ।
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"आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यः " ० २/४/५ आत्मा का दर्शन करना चाहिये उसको सुनना चाहिये, आदि