________________
( ४३६ ) शरीर न होना भी ईश्वर के कर्तव्य में वाधक है। संसार की दुःखमयता भी ईश्वर के विरुद्ध साक्षी देती है ।" ।
श्री बल्देव उपाध्याय. एम. ए, साहित्याचार्य ।
भारतीय दर्शन, सिर पर कि मंगलागलाद परिलोपिक भी मिला है) में लिखते हैं कि.--"तत्व-शानकी दृधिसे मीमांसा प्रपंच की नित्यता स्वीकार करती है। मीमांसा जगतकी मूल सृष्टि तथा श्रात्यन्तिक प्रलय नहीं मानती। केवल व्यक्ति उत्पन्न होते रहते हैं तथा नाशको प्राप्त करते रहते हैं. जगतकी सृष्टि तथा नाश कभी नहीं होता ब्रह्म सूत्र तथा प्राचीन मीमांसा ग्रन्थों के आधार पर ईश्वरकी सत्ता सिद्ध नहीं की जाती ।" मीमांसा दर्शन प्रकरणा ।
श्री राहुल सांकृत्यायनी. दर्शन दिग्दर्शन में लिखते है कि
"ईश्वर के लिये मीमांसामें गुंजायश नहीं। जैमिनिको वेदोंकी स्वतः प्रमाणता सिद्ध कर यज्ञ कर्मकांड का रास्ता साफ करना था उसने ईश्वर सिद्धिके बखेड़ेमें पड़नेसे बेदको नित्य अनादि सिद्ध करना आसान समझा।
आपने इस विषयमें पद्मपुराणका एक प्रमाण भी दिया हैं। यथा---
द्विजन्मना जैमिनिना पूर्व वेदमथार्थतः । निरीश्वरेण वादेन कृतं शास्त्रं महत्तरम् ॥ उत्तरखंड २६३
अर्थात्-जैमिनिने वेदके यथार्थ अर्थके अनुसार यह मीमांसा दर्शन निरीश्वरवादात्मक रचा ।
प्रसिद्ध दार्शनिक बा, 'सम्पूर्णानन्दर्जा' ने चिदविलास में लिखा है कि:__'जो लोग ईश्वरके अस्तित्वको स्वीकार नहीं करते उनमें कपिल, जैमिनि, बुद्धऔर महावीर जैसे प्रतिष्ठित आचार्य है।' पू१०३