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________________ यदि आप चाहें तो अचेतन अथवा अस्वयं वेद्य अर्थात् अपने आपको शात न होने वाली बुद्धि कह सकतेहैं । परंतु. उसे चाहे जो करें. इसमें संदेह नहीं,कि मनुष्यको होने वाली बुद्धि और प्रकृतिकी होनेवाली बुद्धि दोनों मूल में एकही श्रेणी की हैं और इसी कारण दोनों स्थानों पर उनकी व्याख्याएं भी एक ही सी की गई हैं। उस बुद्धि के ह्रीं 'महत ज्ञानात्मा, आसुरी, प्रजा. ख्याति, आदि अन्य नाम भी हैं। मालूम होता है कि इनमेंसे मह्त (पुझिंग कर्ताका एक बचन महान्-बड़ा) नाम इस गुणकी श्रेष्टता के कारण दिया गया होगा, अथवा इसलिये दिया गया होगा.कि जब प्रकृति बढ़ने लगती है। प्रकृतिमें पहले उपन्न होने वाला महान अथवा बुद्धि-गुण सत्वरज-तम के मिश्नका ही परिणाम हैं. इसलिये प्रकृतिकी यह बुद्धि यधपि देखने में एक ही प्रतीत होती हो तथापि यह आगे कई प्रकारकी होसकती है। क्योंकि ये गुगा-सत्व रज और तम-प्रथम दृष्टिसे यद्यपि तीन ही है. तथापि सूक्ष्म दृष्टिसे प्रगट होजाता है, कि इनके मिश्रणमें प्रत्येक गुणका परिणाम अनेक रीतसे भिन्न र हुआ करता है, और इसीलिये, इन तीनों में से प्रत्येक गुणके अनंत भिन्न परिणामसे उत्पन्न होनेवाली बुद्धि के प्रकार भी त्रिधातः अनंत हो सकते हैं । अव्यक्त प्रकृतिसे निर्मित होनेवाली यह बुद्धि भी प्रकृतिके ही सहश सूक्ष्म होती है। परन्तु पिछले प्रकरण में 'व्यक्त' और 'अध्यक्त , तथा 'सूक्ष्म और स्थूल' का जो अर्थ बतलाया गया है उसके अनुसार यह बुद्धि प्रकृतिके समान सूक्ष्म होने पर भी उसके समान अव्यक्त नहीं है मनुष्यको इसका झान हो सकता है। अतएव,अन यह सिद्ध हो चुका है कि इस बुद्धि का समावेश व्यक्त में (अर्थात् मनुष्यको गोचर होने वाले पदार्थों में) होता है; और सांख्य शास्त्र में, न केवल बुद्धि, किन्तु बुद्धिके आगे प्रकृति के सख विकार भी व्यक्त ही माने जाते हैं । एक मूल प्रकृतिके सिवा कोई भी अन्य तत्व अव्यक्त नहीं है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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