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________________ .------- -- -- यं नान पदार्थ बने, और इसके बाद, इन तीनों के मिश्रण अथवा संयोगसे सब सजीव तथा निर्जीव सृष्टि उत्पन्न हुई है । डार्विन 'प्रभृति पंडितोंने तो वह प्रतिपादन किया है कि इसी तरह मनुष्य भी छोटे कीड़ेसे बढ़ते बढ़ते अपनी वर्तमान अवस्थामें आ पहुंचा है। परन्तु अब तक अधिभौतिक-वादियों में और अध्यात्म-वादियों में इस बात पर बहुत मतभेद हैं. कि इस सारी सृष्टिक मूल में श्रात्मा जैसे किसी भिन्न और स्वतन्त्र तत्वको मानना चाहिये या नहीं । हेकलके सहश कुछ पंडित यह मान कर. कि जड़ पदार्थोसे ही बढ़त बढ़त आत्मा और चैतन्यकी उत्पत्ति हुई,. जड़ातिका प्रतिपादन करते हैं, और इसके विरुद्ध कान्ट सरीखे अध्यात्मशानियोंका यह कथन है. कि हमें सृष्टिका जो ज्ञान होता है वह हमारी आत्माके एकीकरण-व्यापारका फल है. इसलिए आत्माको 'एक स्वतन्त्र तत्व मानना ही पड़ता है। क्योंकि यह कहना-कि जो आत्मा वाम सृष्टिका झाता है, वह उसी सृष्टिका एक भाग है अथवा उस सृष्टिही से वह उत्पन्न हुआ है-तर्क दृष्टिसे ठीक वैसा ही असमंजस या भ्रामक प्रतीत होगा. जैसे यह उक्ति कि हम स्वयं अपने ही कंधे पर बैठ सकते हैं । यही कारण है, कि सांख्य शास्त्रमें प्रकृति और पुरुष ये दो स्वतन्त्र तत्व माने गये हैं। सारांश यह है कि अधिभौतिक सृष्टि शान चाहे जितना बढ़ गया हा, तथापि अब तक पश्चिमी देशों में बहुतेरे बड़े बड़े पंडित यही प्रतिपादन किया करते हैं कि मष्टिके मूलतत्वके स्वरूपका विवेचन भिन्न पद्धतिहांस क्रिया जाना चाहिये । परन्तु, यदि केवल इतना ही विचार किया जाये. कि एक जड़ प्रकृतिसे आगे सब ठयक्त पदार्थ किस क्रमसे बने हैं तो पाठकोंको मालूम हो जायगा,कि पश्चिमी उत्क्रान्ति-मनमें और मान्य शास्त्रमें वर्णित प्रकृतिके कार्य संबंधी नत्वोंमें कोई विशेष अन्तर नहीं है । क्यों कि इस - --
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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