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________________ ( ४३७ ) अर्थ- हाथ पांवकी बीस अंगुलियां और नौ छिद्र रूप प्राण य०२ के साथ प्रजापति ने पन्द्रपत्रीं स्तुतिकी जिससे वनस्पतियें उत्पन्न हुई। सोम उनका अधिपति हुआ (१४), बीस अंगुलियों दस इन्द्रियों और आत्माओं इकोस के साथ प्रजापति ने सोलहवीं स्तुति की, जिससे उत्पन्न हुई, इसके अविपति यव और अयक देव हुए (१६) वीस अंगुलियां दस इन्द्रियाँ पाँच, और एक श्रात्मा यो तेतीसके साथ प्रजापतिने सत्रहवी ' स्तुतिकी, जिससे सभी प्राणी सुखी हुये। परमेष्ठी प्रजापति इनका अधिपति बना । १- सामन्य प्रजा २- ब्राह्मण ३-पांच भूत ४- सप्त ऋषि ५- पितर ६-- ऋतुएँ ७- मास ८-नक्षत्र सृष्टि क्रम कोष्टक हन्याम पशु १०- शुद्र और वैश्य ११- एक खुर वाले पशु १२- क्षुद्र पशु प्रजा यादि १३-जंगली पशु २४ - द्यावा. पृथ्वी, वसु आदि देवता १५-वनस्पति १६- सामान्य प्रजा सवै वरं तस्मा देकाकी न रमते । स द्वितीय मैच्छत् । सतावानास यथा स्त्री पुसी संपरिपक्कोस इपमेवात्मानं द्वापायत्ततः पतिश्वचाभवतां तस्मादिदमर्धमृगलमिवस्व इति ह स्माE Risaल्क्यस्तस्मादयमाकाशः स्त्रियापूर्यत एव तां समभवत्ततो मनुष्या श्रजायन्त ! ( वहदा० १/४/३ )
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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