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________________ ( ४३६ ) स्तुवत् । द्यावापृथिवीयतां । वसवो रुद्रा आदित्या अनुंव्यायंस्त एवाधिपतय आसन् । ( शु० यजु० माध्य० सं० १४|३०| ३० ) अर्थ - हाथों की इस अंगुलियां और ऊपर, नीचे रहे हुए शरीर के नौ छिद्र य १६ प्राणों के साथ प्रजापति ने दसवीं स्तुति की, जिससे शुद्ध और वैश्य उत्पन्न हुए अहोरात्र इनका अधिपति हुआ । (१०) हाथ और पैर को बीस अंगुलियाँ और एक अत्मा इन इक्कीस के साथ प्रजापति ने ११ वी स्तुति की जिससे एक खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति हुई. वरुण उसका अधिपति हुआ ( ११ ) हाथ पैर की बीस अंगुलिये दो पाँव एक आत्मा यो तेस के साथ प्रजापति ने १० वी स्तुति की जिससे क्षुद्र पशुओं की उत्पत्ति हुई. पूषा इनका अधिपति हुआ । ( १२ ) हाथ पाँव की बीस अंगुलियां दो हाथ दो पाँव एक आत्मा यो पच्चीस के साथ प्रजापति ने तेरहवीं स्तुति की जिससे श्रारण्यक पशुओं की उत्पत्ति हुई। वायु इनका अधिपति हुआ । ( १३ हाथ पांव की बीस अंगुलियां दो भुजाएं दो उर दो प्रतिष्ठा और एक आत्मा यों सत्तावीस के साथ प्रजापति ने चौदहवी स्तुति की, जिससे स्वर्ग और पृथ्वी उत्पन्न हुई वैसे ही आठ वसु स्यारह रुद्र और बारह आदित्य भी उत्पन्न हुए। और इनके अधिपति ये ही बने १४ नव विशत्याsस्तुत्रत। वनस्पतयाऽसृज्यन्त | सोमोडधिपतिरासीत् । एकत्रिशताऽस्तुवत । प्रजा असृज्यन्त । यत्राश्रायवाश्चाधिपतय श्रासन् । त्रयत्रिशताऽस्तुचत । भूतान्यश-म्बन प्रजापतिः परमेष्यति रासीत् । 1 (शु जु माध्यं० सं० १४ /३० / ३१ )
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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