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________________ ( ४१४ ) "कालवादिनबाहु"-- . कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ ६१ ।। व्याख्या- कालवादी कहते हैं कि-काल ही जीवों को उत्पन्न करता है, और काल ही प्रजाका संहार करता है, जीवोंके सूते हुए रक्षा करणरूप काल ही जागता है. इस वास्ते काल का उल्लंघन करना दुष्कर है। "ईश्वर काकाचाप्रकृतीनां यथा राजा रक्षार्थमिह चोयतः । सथा विश्वस्य विश्वात्मा स जागति महेश्वरः ॥६२॥ व्याख्या-ईश्वरको कारण मानने वाले कहते हैं कि जैसे प्रजाकी रक्षाके वास्ते राजा उद्यत है तसे ही सर्व जगतकी रक्षाके वास्ते विश्वात्मा ईश्वर जागता है । "ब्रह्मवादिनचाहु"--- आसिदिदं तमोभूतमप्रज्ञातम लक्षणम् । अप्रतर्थ्यमविज्ञेयं प्रसुप्तमिव सर्वतः ।। ६५ ।। व्याख्या-ब्रह्मवादी कहते हैं कि इवं यह जगत् तममें स्थित लीन था प्रलय कालमें सूक्ष्म रूप करके प्रकृतिमें लीन था. प्रकृति भी ब्रह्मात्म करके अव्यक्त थी अर्थान् अलग नहीं इस वास्ते ही अप्रज्ञात प्रत्यक्ष नहीं था. अलक्षणम् अनुमानका विषय भी नहीं था अप्रतय॑म् तयितुम शक्यम् , तर्क करने योग्य नहीं था, याचक म्थूल शरुनके अभावसे इस वास्ते ही अविझेय था अर्थापत्तिके भी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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