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________________ ( ४१२ ) Į श्रवसर्पण अर्थात अवतरा हुआ, सो एक मनु ही बस सृष्टिमें से याकर बचे और सपा प्रजातसमूह में ही लयहोगई तब फिर मनु जाने के रचना पर्यालोचन करतान किया इसी से यह प्रजा मानवी नामसे अब तक प्रसिद्ध हैं । और कितनेक ऐसा मानते हैं कि यह तीनों लोक दक्ष प्रजापति ने करे है केचित्प्रातिखिधर गतिका हरिः शिवो ब्रह्मा । शंभुजं जगतः कर्ता विष्णुः क्रिया ब्रह्मा ॥ ४६ ॥ व्याख्या कितने कहते हैं कि एक ही परमेश्वर की मूर्तिकी तीन गतियां हैं हरि (विष्णु) १. शिवर, और अ२ तिनमें शिष तो जगत्‌का कारण रूप है, कर्त्ता विष्णु है और क्रिया मझा है वैष्णवं केचिदिच्छति केचित् कालकृतं जगत् । ईश्वर प्रेग्स के च केचिह्नविनिर्मितम् ॥ ४७ ॥ 4 | व्य रूपा - कितनेक मानते हैं कि यह जगत् विष्णुमय वा विष्णुका रचा हुआ है. और कितनेक कालकृत मानते हैं और कितने कहते हैं कि कि जो कुछ इस जगत् में हो रहा है, सो सर्व ईश्वर की प्रेरणा से ही हो रहा है और कितनेक कहते हैं. यह जगत् मह्मा ने उत्पन्न करा है I , श्रव्यक्तप्रभवं सर्व विश्वमिच्छन्ति काविताः । विज्ञप्ति मात्रं शून्यं च इति शाकरस्य निश्वयः । ४८॥ व्याख्या - अव्यक्त | (प्रधान प्रकृति) निम असे सर्व जग : उत्पन्न होता है ऐसे कपिल के सतके मानने वाले मानते हैं, और शाक्य मुनिके मन्तानाय विज्ञानात क्षणिक रूप जगत् मान और किन तिमी सर्व जगतको शून्य ही मान
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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