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________________ गया, और सो फेर उससे भी बहुत बड़ा क्षरण २ में बढ़ने लगा। तदनन्तर यो मत्स्य राजा मनु से जिस वर्षको जिस तिधिको वो जलोंका समूह भाने वाला था. बतला कर कहता हुआ कि. जब यह समय आवे तब हे राजन ? तुम एक उत्तम नाव बनवा कर, और उस नावमें सवार होकर, मेरो उपासना करना; अर्थात् मेर । स्मरण करना । जब सो जलोंका समूह अवेगा तब मैं तेरा नौकाके पास हो आजाऊंगा, मार सचिन देगा मालामगा! ___ मनु जी तदुक्त क्रमसे उस मस्यको धारण पोषण कर समुद्र में पहुंचाते भये, सो मनु जिस तिथी और जिस संवमें नाव धनवा कर उस मत्स्य रूप भगवानको उपासना करते भये । तद्नंतर सो मनु, उन जलोंके समूहको उठा देख कर नावमें प्रारूढ़ हो जाते मये, तब वह मत्स्य सिंस मनु जीके समीप आकर ऊपर को ही उछले, तब मनु जीने उन मत्स्य भगवानको पछलते हुय देखा, तब मनु जी तिस मत्स्यके अंगमें अपनी नौकाका रस्सा डाल देते भये, तिस करके वह मत्स्य नौकाको खींचते हुये उत्तर गिरी (हिमालय) नामक पर्वतके पास शीघ्र ही पहुंचा देते भये। पर्वतके नीचे नौका को पहुंचा कर मत्य कहते भये कि, हे राजन ? निश्चय करके मैं तेरे को प्रलय जल में डूबनेसे पालन करता भया हूं, अब तुम नौकाको इस वृक्ष के साथ बांध दीजिये, तुम इस पर्वत के शिखर पर जब तक जल रहे तब तक रहना, और इस रस्सेको मत खोलना, फिर जब कि यह जन पर्वतके नीचे जैसे २ उतरता जाये तैसे २ ही तुम भी पर्वतके नीने उतरते श्राना, ऐसे मनुजाके प्रति समझा कर मस्प जो जज़में समा गर और सो मनुजा भी मस्प जीके कथनामुक्त जमे - जल -- रता गया तैसे २ इस जलके अनुकूल ही पर्वतके नीचे २ उतान आये. सो भी यह केवल पर्वतके ऊपरसे एक मनु का ही जो नीचे
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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