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________________ अमिरिद्धि प्रचेता अनिर्वेधस्तम ऋषिः । अग्निं होतारमीड़ते यशोषु मनुषो विशः ।। ऋ०६।१४।२ स्वामीले अव दिना भरतो वाशिभिः झुलम् । भरत ने दो प्रकार से श्रमि की पूजा की। यह सम्पूर्ण सूक्त अच्छा है। तं सुप्रकि सुश स्वञ्चविद्वांसी दुष्टर भषेम । ० हेम, सर्वज्ञ, शोभनांग, मनोज्ञमूर्ति. और गमनशील अग्नि देवका परिचरण करते हैं । (यह सूक्त भी सम्पूर्ण देखने योग्य है) इन्द्र अन्तरिक्ष का देवता है । तथा इसको यज्ञ का देवमा भी कहा गया है 1 . इन्द्रो यज्ञस्य देवत्ता । २० कां० ३ । ७।५।४ तथा यह देवताओं का राजा माना जाता है । इसको शतक्रतु भी कहते हैं। क्योंकि एक सो अश्वमेध यज्ञ करने पर इन्द्रपल प्राप्त होता है। ___ यह दक्षिण नथा पूर्व दिशा का अधिपति है । (दक्षिणादिक इन्द्रो देवता ) ते ३ १ ११ १ ५। १ · इन्द्र में पानी के फेन मे शस्त्र बनाकर नमुचि अप्सर का शिर काटा था।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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