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________________ मभि ने अपने रूपों द्वारा अपने को अतीच रमणीय किया था दूसरे ही क्षण द्यावा पृथ्वी को देखा था। अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृत मे चक्षुस्मृतं म आसन्। । अस्थिधातू रजसो विमानोजस्रो धर्मो हत्रि रस्मि नाम।७। - मैं अग्नि जन्मसे ही सब कुछ जानने वाला हूं, घृत (प्रकाश) ही मेरा नेत्र है मेरे मुख में अमृत है. मेरे प्राण त्रिविध हैं.. मैं अन्तरिक्ष को मापने वाला हूं. मैं अक्षय उत्ताप हूं. मैं हन्यरूप हूं। . यह सम्पूण मूक्त बहुत ही सुन्दर है । द्रष्टव्य है। . इसी सूक्त के मन्त्र ३ में आये हुये युग शल का अर्थ स्वामी जी ने दिन किया है। सूक्त० २६ मन्त्र ३ में अग्नि को इलाका पुत्र B. मसलाया है । (अर्थात इला देशसे प्राया था. ऐलराजा चन्द्र बंश का प्रथम राज। पुरुरवा यहाँ पाया था ) अमित्रायुधो मरुतामित्र प्रयाः प्रथमजा ब्रह्मणो विश्वमिदं विदुः । धुम्रवद ब्रा कुशिकास एरिर एक एको दमे अनि समीघिरे ॥ ऋ० म० ३ ० २९ । १५ मरसों के समान शत्रुओं से युद्ध करने वाले और ब्रह्मा से पहले उत्पन्न हुये कुशिक लोग निश्चय ही मम्पूर्ण संमारक जाना हैं। अनि को लक्ष्य करके मन्त्र बनाते हैं वे लोग अपने घर में अमि को प्रदान करते हैं। यह सूक्त भो सम्पूर्ण द्रष्टव्य है। ..... ऋग्वेद मण्डल ५ सूक्त ११ से २६नक 'अग्नि का सुन्दर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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