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________________ ( ३०६ ) स्थूल का निषेध हैन के सृष्टि का जन्म से पूर्व तथाच स्वयं में मन्त्र गंगा प्रशाद की उपाध्याय, अनवाद' पुस्तक में आये हुवे देवाः शब्द का अर्थ इन्द्रियाँ करत हैं । यथा - ( अस्य विसज्जन अग देवाः ) इसके फैलने से पीछे देव अर्थात् न्द्रियां हुई । पृ० ३७४ 31 आगे आपने ३७३ में देवानां पूर्वे युगेऽमतः सद जावत । मन्त्र के अर्थ में भी लिखा है कि ' अर्थात इन्द्रियों के पहले युगमें सतसे सत हुआ ।" इस कथन से यह स्पष्ट सिद्ध हो गया कि यहां शरीर इन्द्रिय व प्राण आदि की रचना का प्रकरण है । तथा च मन्त्र ४ में था है कि - ( हृदि प्रतीच्या कवयो मनीषा ) अर्थात "असत में सत के बन्धु को विचार शील ऋषियों ने हृदय में धारण किया ।" अतः यदि यहाँ प्रलय अवस्थाका वर्णन है तो उस समय विचार शल ऋषि कहाँ थे जिन्हों ने असर में सत् के बन्धु को हृदय में धारण किया था। यह मन्त्र स्पष्ट रूप से कहता है. कि यह प्रकरण प्रलय अवस्था का नहीं है । अतः यही मानना युक्तियुक्त है कि यहां भाव प्राणोंसे द्रव्य प्राणोंकी तथा भाव इंद्रियों से द्रव्य इन्द्रियों की रचना का कथन है । तथा च प्रश्नोपनिषद में इस नासदाय सूक्तकी बड़ी सुन्दर व्याख्या की है । यथा: (१) एषोऽग्निस्तपति, एष सूर्यएष पर्जन्यो मघवानेष वायुः । एष पृथिवी रयिर्देवः सदसच्चामृतं च यत् ॥ प्र०३०/२/५ ( २ ) -- विशेषके लिये माया प्रकरण देखें |
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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