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________________ ( ३८५ ) भूत और भविष्य को जमणेस मानकर भादवाइका कान करता है। तथा च यजुर्वेद अ० १३ मन्त्र ३ में (सनश्च योनिमसतश्च दिवः) सूर्य को सत और असत को योनि कड़ा है। अर्थात सूर्य से ही मूत व अमूर्त पदार्थ प्रकट होते हैं । अर्थात स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों का सूर्य ही उत्पादक है। यहां भाष्यकारों ने सूर्य को ही कारण माना है । इस प्रकार सत् और असत् का अनेक प्रकार से कथन किया है । परन्तु यह बणन वास्तविक रहस्य का प्रकट नहीं करता। इसका रहस्य ब्राह्मण ग्रंथोंने प्रकट किया है। यथा-- असत्-अथ यद सत् सई सा वाक् सोऽपानः | सत्-यत् सत् तत्साम तन्मनस्स प्रायः। जेब्रा० उ. ११५३२ अर्थात् बाणी और अपान का नाम असत् है, तथा मन और प्राणका नाम सत् है। अमृतम्-अमृतं वै प्राणः । मो० उ० १११३ अमृतं हि प्राणाः । श१० १०|शवार अमृतं मापः । गो० उ० १३ अमृत तत्वं वा श्रापः । कौ० ११ अर्थात् जल और प्राण आदि अमृत हैं। इस प्रकार शास्त्री में प्राणीको अमृत और इन्द्रिय आदि को मृत्यु कहा गया है। अतः नासदीय सूक्त में सत् और असत् श्रादि शब्द स्थूल प्राण व इन्द्रिय मोधक है । है नोट, वेदान्त दर्शन, २०२ । ४ । १ के भाष्य में अग बा इद मन सीत् ) ०3०१२ | ७ की इस अतिम पाये हुये असत् । का अर्थ (श्री स्वामी शंकराचार्यजीने शंकर भापमं) प्रागा ही किया है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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