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[ग j एतिहासिकता पर चर्चा की है। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है और इस पर अनेक दार्शनिक एवं ऐतिहासिक विद्वान विचार कर चुके हैं। स्वामीजी का निष्कर्ष इस विषय में अन्तिम है, यह कहना तो स्वयं स्वामीजी भी नहीं चाहेंगे, पर मैं इतना कह सकता हूँ कि स्वामीजी ने आज नक की इस विषयमें प्रचलित परम्पराओं की दीवारों का लांघकर अनुसन्धान के दूर वीक्षण से बहुत दूर तक झांका है और एक नई सृष्टि खड़ी की है । दूसरे शब्दो में भारतीय दर्शन एंव इतिहास के पण्डितों और विद्यार्थियों को एक नये दृष्टिकोण पर विचार करने का यह बामन्त्र है, ऐसा श्रामन्त्रए जिसमें अपनी भारतमाता के प्रति श्रद्धा है, अनुसन्धान की उत्कण्ठा है और विचार बिनिमय की तत्परता है।
मेरा विश्वास है कि इस विषय में दिलचस्पी रखने वाले विद्वान न केवल इस आमन्त्रण को सुनेंगे ही किन्तु इसे स्वीकार भी करेंगे। विद्वान लेखक के साथ मेरी भी कामना है कि अनेक धर्मा एवं संस्कृतियों की जननी भारतमाता इस अध्यवसारा से प्रसन्न हो।
-कन्हैयालाल मिश्न 'प्रभाकर'.
सम्पादक-विकास