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________________ ( ३०१ ) किया । किन्तु उसमेंसे पुनः वह निकल न सका । उसने देवोंसे कहा कि जो मुझे इसमेंसे निकाल देगा वह ऋद्धिवान होगा।" उपरोक्त लेखां से यह प्रमाणित होगया कि वैदिक वाङमय में, पुरुष, त्र, ज्ये, स्कंभ, हिल्स में पति विद विश्वकर्मा आदि नामोंसे जिसका वर्णन हुआ है वह प्राण है तथा जीवात्मा भाव प्राणोंसे द्रव्य प्राणोंकी एवं द्रव्य प्राणोंसे स्थूल शरीरकी रचना करता है इसीको प्रजापति आदिकी सृष्टि रचना कहते हैं । अब हम उन सूक्तों पर प्रकाश डालेंगे जिनसे सृष्टि रचना तथा महा प्रलय आदिका प्रतिपादन किया जाता है। सबसे प्रथम सुप्रसिद्ध नासदीय सूक्त' (जिसको सृष्टि सूक्त भी कहते का विवेचन करते हैं नासदीय वा सृष्टि सूक्त 1 1 ऋग्वेद मं० १० के सू० १२६ का नाम नासदीय सूक है । यह नाम इसका इसलिये है कि इसका प्रथम मन्त्र 'नासदासीत् ' इस पदसे प्रारम्भ होता है । सुखे विषयका विचार करने वालोंके लिये यह सूक्त बड़े ही महत्वका है. यही कारण है कि प्रत्येक ऐति हासिक ने तथा प्रत्येक दार्शनिक लेखकने इस सूक्त पर अवश्य अपने विचार प्रकट किये हैं। अतः हम भी इस पर विचार करना ध्यावश्यक समझते हैं | प्रथम हुप यह सूक्त और इसका प्रचलित अर्थ लिखते हैं। पुनः अन्य विद्वानोंको सम्पत्तियां तथा Baat समालोचना लिखेंगे, तत्पश्चात् अपने अर्थ प्रकट करेंगे । * यहं वर्णन स्वरूपसे जीवात्माका है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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