SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। पात्मासे यह प्राण छायाकी तरह उत्पन्न होता है, तथा इस शरीरमें मानसिक संकल्प व रा यह प्राण प्राता है। श्रारमा इस श्राये हुये प्रारणसे अधिष्ठान करा, देवता, रूपसे सम्पूर्ण इन्द्रियों की रचना करता है । सबसे प्रथम जब उसने संकल्प लिया जो उसमें स्पन्दन हलन चलन हुआ जिसको जैन परिभाषामें शोग' कहते हैं। यही मानो उसका मुस सुजा। इससे सामादि हरि उत्पन्न हुई, उनसे इन्द्रियांक गोलक बने. उसके पश्चा। उनमें प्रकाश आया. अर्थात् उनक देवताओंकी रचना हुई। यथा मुग्यसे "धक बाकसे अने, वाक हीका नाम अग्नि है अतः प्रथम कक से भावन्द्रिय आदि अभिप्रेत है, तथा अग्निसे जिला, के श्राकारका ग्रहण है । इसी प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिये । ___ अक्षि चक्षु, श्रादित्य. मन, उदय चंद्रमा ये सब यहां पर्याय माची शब्द हैं । जिनका अभिप्राय अधिष्ठानकरण, देवस हैं। प्रजापति का फैसना यह श्रात्मा (प्रजापति) अपने श्राप ग्रह भाव कम और द्रव्य कर्म अर्थान् कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर. और स्थूल शरीर रच कर अपने आप इसमें प्रवेश करता है. परन्तु-अथ बह इसमें से निकल नहीं सकता, उसका शास्त्र में एक सुन्दर आख्यान है। प्रजापतिः ग्रेजांसृष्टः प्रमणान पाविशत् । ताभ्यः पुनः सं भवितु ना शक्रोत । सोऽब्रवीत नवदिन स-यो मेतः पुनः संचिन बदिति । कृष्ण यजु ० ० ५। ५ । २ प्रजापतिने इस जगतका सर्जन कर इसमें प्रेमसे प्रवेश
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy