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________________ - - - सप्त प्राणाः प्रभवन्ति । यहाँ सप्त प्रागण । अष्टौरक्षा अष्टावति ग्रहाः । यहाँ अष्ट प्राण | सात – शीर्षण्याः प्राणाः द्वाववाचौं । यहाँ नव प्राण। नव 3 पुरुष प्राणा नाभिदेशमी । यहां दश प्राण । दशेमे पुरुषे प्राणा आत्मैकादशः । यहां एकादश प्राण । सर पो स्पर्शानां त्वगेकायतनम् । यहाँ द्वादश प्राण । चक्षुश्च द्रष्टव्यश्च । यहाँ प्रयोदश प्राण । ये सब मेद शंकराचार्य ने इसी सूत्र पर दिये हैं। अन्त में इस सूत्रके अनुसार स्थिर करते हैं कि सात ही प्रारण हैं। "सप्तवेशोषणयाः प्राणाः" । "गुहाशया निहिता मत सम" इत्यादि प्रयाग से सप्त प्राशा कहे हैं इस प्रकार दबंग ना प्राशांका निरूपण विविध प्रकारसे आया है।" (वैदिक इतिहासार्थ निर्णयम पं० शिवशंकरजी काव्यतीर्थ ) प्राण स्तुति एपोऽग्निस्तपत्येष सूर्य एष पर्जन्यो मघवानेष वायुरेप पृथिवी रविवः सद् सञ्चामृतं च यत् ॥ ५ ॥ अरा पव रथ नामों प्राणे सर्व प्रतिष्ठिनम् । ऋचो यजूंपि सामानि यज्ञः सत्रं ब्रह्म च ।। ६ ।। प्रजापतिवर्गस गर्भ त्वमेव प्रति. जायसे । तुभ्यं प्राण प्रजास्त्विा मा बाल हन्ति यः पाए। प्रतितिष्ठसि ।। ७ ॥ देवानामसि चन्हितमः पितणां प्रथमा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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