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________________ । ३५४ ) इत्यादि प्रश्नोपनिषद् और अन्यान्न उपनियनों में देखिये । यहाँ प्राणों में चेतनत्व और पुरुषत्रका आरोगकर सम्बाद और स्तुति आदिका वर्णन है। प्राणों में महोत्वारोप छान्दोग्योपनिषद् के पंचम प्रपाठक के बाद में हो कहा है. कि सब प्राण प्रजापतिके निकट जाकर बोले, कि हम में श्रेष्ठ कौन है। प्रजापति ने कहा कि आपमं मे जिनके न रहनेसे यह शरीर पापिष्ट हो जाय वही श्रेष्ठ है। प्रथम वागवी इस शरीरसे बाहर निकल गई । परन्तु इसके निकलने से शरीर पापिष्ट नहीं हुआ, क्यों कि मूक (गंगा ) षत् सब प्रारण निर्वाह करने लगे। इसी प्रकार चक्षु, श्रोत्र और मन, भी क्रमपूर्वक अपनी २ शक्ति की परीक्षा करने लगे। अन्ध, यधिर, और बालक वत् सबका निर्वाह हो गया। परन्तु जब मुख्य प्राण निकलने लगा तब ये बाग, चक्षु, श्रोत्र, और मन देव सब मिल कर भी शरीरको धारण न कर सके शरीर पापिष्ठ होने लगा । सब ये प्राण मुख्य प्राणकी स्तुति करने लगे । वागने कहा हे प्रान्स ! आप वसिष्ठ और मैं बसिधा हूं। चचने कहा आप प्रतिष्ठ है, और मैं प्रतिष्ठा हूं। श्रोत्रने कहा आप सम्पद हैं और मैं सम्पदा हूं। मनने कहा आप पायतन हैं और मैं पायतन हूं। इत्यादि प्रयोगमें वाग , मन, श्रोत्र, चक्षु और प्राण ये ही पाँच पंच प्राण कहाते हैं, यह सदा ध्यान रखना चाहिये। प्राणों की संख्या सप्तगतेविशेषिसत्वाच्च । वेदान्तमूत्र २४ । ५
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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