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इन्द्रिय (प्राण ) ही पंचजन हैं यस्मिन पञ्च पञ्चजना आकाशश्च प्रतिष्ठितः ।
वृ०४१४ । १७ जिस शरीरमें पंच संख्या पांच जन हैं। और श्राकाश प्रतिटित हैं। वजन रातो मारमाही दशा है. मममें वेदान्त सूत्र १ । ४ । १२ । प्राणादयोवाक्यशेषात् । देखिये बाग , मन, चक्षु, श्रीन और प्राए ये पञ्च प्राण कहाते हैं । इनके ही नाम पञ्चजन. पञ्चमानव, पश्च निति. पञ्चकृष्टि आदि भी है । कहीं पञ्चज्ञानेन्द्रिय, कहीं पञ्चमारण, कई दशप्राण,कहीं एकादश प्राण । कहीं पञ्च ज्ञानेन्द्रिय, पष्ठमन जोड़कर पद्माण । इस्यादि घर्शन प्राता है।
प्राण ही द्वारपालक पञ्च ब्रह्म पुरुष है
छा०३।१३ में लिखा कि इस हदयके पांच देव सुषि अर्थान छिद्र हैं। १-पूर्व में चचं रूप छिद्र है वहीं प्राण और आदित्य है
-दक्षिण में नीत्र रूप छिद्र है। वही व्यान और चन्द्रमा है। ३–पश्चिम में याग रूप छिद्र है । वहीं अपान और अग्नि है। ४-उत्तर में मनोरूप छिद्र है वहीं समान और पर्जन्य है।५.ऊपर वायुरूप छिद्र है वही उदान और श्राकाश है । ये पांच प्रश्न पुरुष हैं । स्वर्ग लोकके द्वरपालक हैं।
प्राणं ही देव और असुर हैं हान्दो- ११२। और वृहदारण्यक ५ । ३ । में कहा है कि इन्द्रिय ही देव और असुर हैं दुष्टेन्द्रियों के नाम असुर और वशीभूत इन्द्रियोंक नाम देव हैं। अथवा इन्द्रियोंकी जो साधु