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________________ अनि, सूर्य, चन्द्र और सलधाई भी उना में मामा वायु मुख्य है। तदत शरीर में प्राण, वाणी. चक्षु. श्रोत्र और मन येपांच प्राण ( इन्द्रिय ) हैं इनमें प्राण मुख्य है। पुनः ३.-१७ में कहा है कि अध्यात्म जगत में मनको गृहन जान इसके गुणों का अध्ययन करे । इस मनके वाणी. प्राण, चक्षु और श्रोत्र चार पद हैं और प्राकाश अग्नि, वायु, श्रादित्य और दिशा चार पर है। यहां मनकी आकाशसे तुलनाको है । क्योंकि दोनों ही अनन्त हैं । वृह । १।५ । ४ में कहते हैं । बाग पृथिवी लोक, मन अन्तरिक्ष लोक, और प्राण द्युलोक हैं। वृह १ । ५ । २१ में कहते हैं। इन्द्रिय गण परस्पर स्पर्धा करने लगे कि वाग ने कहा कि मैं ही बोलू गी । चक्षुने कहा कि मैं ही देख गा । श्रोत्रने कहा कि मैं ही सुनूं गा इस प्रकार सब इन्द्रिय कहने लगे । परन्तु मृत्यु आकर इन सबोंको वशमें करने लगा। इसी कारण वाग थकती है। चतु और श्रोत्र शान्त होजाते हैं. मृत्यु इनको विवश कर प्राण की ओर चला। परन्तु प्राणको विवश न कर सका । अतः प्राण सर्वदा चलला हुत्रा थकता नहीं। अतः यह मध्यम प्राण सर्व श्रेष्ठ है यह अध्यात्म है। अब अधि देवत कहते हैं। अग्निने कहा कि मैं प्रज्वलित होऊँगा । सूर्यने कहा कि मैं तपूँगा। चन्द्र ने कहा मैं भाषित होऊँगा। उन्हें भी मृत्युने अपने वश कर लिया । परन्तु वायुदेव को वशमें ना कर सका । क्योंकि सूत्रात्मा वायु सर्वदा प्रलय काल मैं भी धना रहता है। इत्यादि औपनिषद् प्रयोगोंमें इस शरीर को ब्रह्मारसे उपनित किया है। और प्राणको श्रेष्ठता मानी है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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