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________________ रात्रि के समय दुष्ट इच्छासे भ्रमण करने वाला. निःसन्देह ये दुध भाव वाले मानवोंके वाचक ( शब्द ) हैं। परन्तु ये भी रुद्रके ही रूप हैं। जिस तरह ज्ञानदाता ब्राह्मण, सबके पालन करने वाले क्षत्रिय, सबके पोषणकर्ता वैश्य, और सबकी सहायतार्थ कर्म करने वाले शद्र, रुद्र के रूप हैं, उसी प्रकार चोरी करके लोगोंको लूटने वाले रुद्रके ही रूप हैं पाठकोंको यह मानने के लिये बड़ा कठिन कार्य है। चोर भी परमात्माका अंश है । क्या यह सत्य नहीं है। पृ० १६३ ___चार वर्णोंके मानत्रोंका जीव जैसा परमात्माका अंश है. वैसा ही चोर, डाकू, लुटेरोंका जीव भी परमात्माका अंश है।.. वेदका कथन है कि जिस तरह चार वरणोंमें विद्यमान जनता संसव्य है. इसी तरह चार. डाकू, श्रादि भो वैसे ही संसेव्य है।" जन्म आदि कर्मसे नहीं है "आजकल जो बताया जाता है कि पूर्व कर्मके पापके भोग भोगनेके लिये जीत्र शरीर धारण करता है, अर्थात् जन्म पाप मूलक है, यह वेदका सिद्धान्त नहीं है । यह जैन, बौद्ध की कल्पना वैदिक धम्मियोंके अन्दर घुस गई है।" पृ०२७८ इस प्रकार अापने ग्रह मिद कर दिया कि-ईश्वर विपयक चतमान सम्पूर्ण मान्यतायें अवैदिक हैं। ___ इसके लिये हम आपको शतशः धन्यवाद ही देंगे। किन्नु यदि श्राप थाड़ा और विचार करते तो आपको अपनी यह नवीन कल्पना भी अवैदिक और तर्क हीन प्रतीत होती । - मुक्ति नहीं श्राप लिखते हैं कि.- समूचा विश्व एक हो सत्ता है (एक
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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