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________________ : कच्चे धपड़ेका वाचक मुख्यतया है । उक्त पशुको. मारकर उसका चमड़ा उतारकर उसो कच्चे चमका पहनना उस शब्दसे व्यक्त होता है। पाठक ही विचार कर सकते हैं कि यह भूतानी राजाकी रहने सहनेकी पद्धति सभ्यताके किस स्थान पर होना संभव है। हमारा तो यह विचार है कि कपासके या ऊन के कपड़े बुनने और पहननेकी प्रथा शुरू होने के पूर्व युगका यह वर्णन है, क्योंकि आ मनुष्य एक बार ऊनी या सूती कपड़े पहनने की सभ्यतामें श्रा गये. वे कच्चा चमड़ा पहननेके पूर्व युगमें जा ही नहीं सकते. मनुष्य कितनी भी उदासीनतामें रंगा क्यों न हो, वह कक्षा चमड़ा पहन ही नहीं सकता, अदि एक बार वह कपडोंकी सम्यतामें भा गया हो । महादरके वर्णनमें उस चमड़ेसे रक्तकी यूदे चारों ओर टपकनेका वर्णन पत्र बता रहा है. कि वह बिलकुल कया चमड़ा ही पहनता था । कई दिनाक पश्चान् चहा चमड़ा सूख जाना भी संभव है, परन्तु यह शब्द उस समयकी सभ्यताकी दशाका वणन स्पष्ठतासे कर रहा है. इसमें किसीको काई शंका हो ही नहीं सकता । भूतानकी उस समयको ही यह सभ्यता मानना उचित है। क्योंकि अन्य लोगोंसे राजाकी अवस्था कुछ अच्छी ही होना सदा ही संभवनीय है और जिनका राजा हा कचा चमड़ा पहनता हैं उन लोगोंकी सभ्यताको अवस्था उससे अच्छा म.नने का कोई कारण नहीं है । अस्तु । अब इस शनिक साथ ही कप-भृत' शब्द. देखना चाहियः कपालभृत् कपालभृत . कपाली. कपालधारी आदि शब्द समानार्थक ही है । कपाल प्रीत स्त्रोपही हाथमें धारण करने वाला । हाथमें थतनके स्थानम खापट्टीका उपयोग करने वाला यह रिवाज भी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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