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________________ निरुक्त निमक्तकारके मतसे विश्वको मध्यमस्थानीय देवता है। वहां लिखा है. कि विश्वकर्मा, तायः, मन्युः, दधिक्रा, सविता, त्वष्ठा, वातः, अभिः. आदि मध्यम स्थानीय देवता हैं। निरुत-विश्वकर्मा, सर्वस्य कर्ता । अथष वैश्वकर्मणो विश्वानि मे कर्माणि कृतानि आनन् इति विश्वकर्मा हि सोऽ भवत ॥ तस्य एषा भवति । तमिद गर्भ प्रथम दन प्रापः || ऋ० १०८२२६ अर्थान—विश्वकर्मा आदि ये मध्यम स्थानीय देवता है। यह सर्वका कर्ना है इसलिये इसको विश्वकर्मा कहते हैं । यह सबका का कैसे है इस पर भाष्यकार कहते हैं कि-"पृथिवी जल. तेजवायु इन चार पदार्थासे शरीरका निर्माण होता है। और उसीके द्वारा सत्र क्रियायें होती हैं, जिसके कारण ग्रह का कहा जाता है। अभिप्राय यह है कि पृथिवी और जल ग्रे दो धातु पहले मिलते हैं और इन दोनों मिली हुई धातुओंको अग्नि तत्व पकाता है. जिससे इनकी हदना होती है. इसके अनन्तर विश्वकर्मा देवता अपने वायुरूप शरीरसे उस शरीरमें प्रवेश करके इस सत्र अद्भुन जगतको करता है. जो अात्मविचारसे रहित पुरुषांको अचिन्त्य या दुर्जेय है । अर्थात् मध्यम लोकका देवता वायु है और उसीके अनुप्रवेशसे सब अन्य सत्व चलते हैं या किया करते हैं. अतः उसीके श्राधीन सब जगत बनता है. इसीलिये मथ्यम लोकका देवता वायु ही विश्वका करने वाला होनेसे विश्वकर्मा है । मन्त्रमें भी यही कहा है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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