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________________ ( ३१४ ) करके पश्चान् ममीपके भूतोंके साथ स्वयं भी हुत होगये वा श्रपि . में पैठ गये। ___-मृष्टि काल में विश्वकर्माका क्या आश्रय था ? कहाँसे और कैसे उन्होंने सृष्टि कार्यका प्रारम्भ किया ? विश्वदर्शक देव विसकर्माने किस स्थान पर रह कर पृथिवीको बनाकर आकाशको धनाया ? ३–विश्वकर्मा की आँखें. मुँह प्य और चरण सभी और से हैं। अपनी मुजाश्री और पोंसे प्रेत - पन्हे वह दिय पुरुष " नावा भूमिको उत्पन्न करते हैं । वह एकाही ४--वह कौन बन और उसमें कौनसा वृक्ष है, जिससे सृष्टि कर्ताओंने न्याया पृथिवीको बनाया ? विद्वानों अपने मनसे पूछ देखो कि. किस पदार्थके ऊपर खड़े होकर ईश्वर सारे विश्यको धारण करते हैं। __५--ग्रजभाग-ग्राही विश्वकर्मा ग्रा फालमें हमें उत्तम, मध्यम और साधारगा शरीरोंको बतादो। अन्नयुक्त कर स्वयं यज्ञ करके अपने शरीर पुष्ट करते हो। ताका + ' .. मह -विश्वकर्मा. तुम यावा पृथिवीमें स्वयं यज्ञ करके अपनेको पुष्ट किया करते हो वा यज्ञीय हविसे प्रबुद्ध होकर तुम यात्रा पृथिवीका पूजन करो। हमारे यज्ञ विरोधी मूर्छित हों। इस यज्ञमें धनी विश्वकर्मा स्वर्गादिके फल-दाता हो। ७-इस यज्ञमें, प्राज जन विश्वकर्माको रक्षाके लिये हम बुलाते हैं । वह हमारे सारे हवनाका सेवन करें । यह हमारे रक्षण के लिये सुखोत्पादक और माधु कर्म वाले हैं। ____ ऋग्वेद मं० १० के सू० ८१, व ८२. विश्वकर्माके सूक्त हैं । तथा यजुर्वेद अ- १७ के मन्त्र १७ से ३२ तक १६ मन्त्र विश्वकर्मा के हैं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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