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________________ ( Hon अर्थात् यह प्रजापति ( जीवात्मा ) अजन्मा होता हुआ भो अनेक प्रकार की योनियों में जन्म लेता रहता है। तैतरीय आरण्यकमें इसी श्रुतिको स्पष्ट करने के लिये लिखा है कि शुक्रेण ज्योतींषि समनुप्रविष्टः प्रजापतिश्चति गर्भे अन्तः तै० श्र० १०|१|१ अर्थात् - यह आत्मा ( ज्योतींषि ) दिव्य प्राणों के साथ, शुक्र (बी) द्वारा गर्भ में प्रविष्ट होकर जन्म धारण करता है। अतः अब इस विषय में सन्देहके लिये कोई स्थान नहीं रहा कि यह वन जीवात्माका ही वर्णन है। तथा च प्रश्नोपनिषद् में लिखा है कि प्रजापतिश्चरसि गर्भे त्वमेव प्रति जायसे । तुभ्यं प्राण प्रजास्त्वा वलि हरन्ति यः प्राणैः प्रति तिष्ठसि । २७ अर्थात् हे प्राण तू ही प्रजाति है, तू ही में संचार करता है, तू ही जन्म ग्रहण करता है। ये सब प्रजायें (इन्द्रियाँ) तेरे को ही बलि समर्पण करती हैं। क्योंकि तू समस्त इन्द्रियों के साथ शरीर में स्थित हैं। अर्थात प्राण ही इन्द्रियरूपी प्रजाका स्वामी है। इसका भाष्य करते हुए श्री शंकराचार्य लिखते हैं कि "गर्भे चरसि पितुर्मातु प्रतिरूपः सम्प्रति जायसे ।" अर्थात् - यह प्रजापति माता पिताके अनुरूप जन्म लेता है। अतः उपनिषद्कारने भी यह सिद्ध कर दिया है कि इस प्रकरण में प्रजाका अर्थ इन्द्रियाँ हैं, और प्रजापतिका अर्थ प्राण है। यहाँ स्पष्टरूपसे जीवात्माका वर्णन है क्योंकि वही कर्मवश नाना योनियों में जन्मता रहता है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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