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________________ ( २६६ ) निरुक्त-अनिना, अग्निम् अयजन्त देवाः । अग्नि पशुरासीत् तमालभन्त तेनायजन्न इति च ब्राह्मणम् । तानि धर्माणि प्रथमान्यामन । तेहनाकं महिमानः समसेवन्त यत्र पूर्व साध्याः सन्ति देवाःसाधनाःद्युस्थानोदेवगणाः, इति नैरुताः पूर्व देव युगमिति स्यानम् ।" निरुत अ० १२ ___ अर्थात--पूर्व माश्य देवताओंने अमिसे अग्निका यज्ञ किया । ब्राह्माणमें भी लिग्ना हैं कि__पहिले अग्नि ही पशु था उसी से दधान यज्ञ किया। य पूर्वसमयके धर्म थे। तथा ब्राह्मण ग्रन्यामें अनेक स्थलोंमें माया है कि ( अग्नि हि देवानां पशुः ) ऐ. १ । १५ पशुरेष सदाग्निः । शत०६४ | १ | २ - इत्यादि, यहाँ पारकाचार्यका लकेत पुरुष मूलमें कथित बिराटपुरुषको अग्नि का वान बता रहा है। क्योंकि मन्त्र १५ में जो पुरुषरूपी पशुको याँधनेका उल्लेखहै उसीको यहाँ अग्नि बनाया गया है। हमने अग्नि देवताके तथा सूर्य देवताके वर्णनमें अनेका प्रागोंसे यह सिद्ध किया है कि प्रजापति अादि नाम अग्नि नादि के ही हैं । अतः याकके मनाने यहां पुरुषक रूपकम अग्निका ही बगान है। नया यजुर्वेदकं इसी प्रकरण में निम्न मन्त्र आया है। प्रजापतिश्चरतिगर्भऽन्तर जायमानो बहुधा विजायते।१६।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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