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________________ • "अध्यात्मपक्षे अग्रे सृष्टयादौ विराट् विविध राजन्ति वस्तूनि यस्मिन्निनि स विराट् मनः संज्ञका प्रजापतिः सहस्र बाहु पुरुषः इति मन्या महापुरुषार पानागत ।" अर्थात - अध्यात्मपक्षमें इसका यह अर्थ है कि उस सहनबाहः (सहस्रा क्ष) पुरुषसे विराटनामक मनरूपी प्रजापति उत्पन्न हुआ।" भागे श्राप लिखते हैं कि 'यते हि "स मान सीन आत्मकजनानाम् मानसीनः मनसानिष्पन्न इत्यर्थः ।" अर्थात्---वह मनुष्योंकी मनसे निष्पन्न होने वाली आत्मा है। नश्रा महीधर लिखते हैं कि "सर्ववेदान्त वेद्यः परमात्मा स्वमायया विराड् देहम् ब्रह्माण्डरूपं सृष्ट्वा तत्र जीवरूपेण प्रविश्य ब्रह्माण्डा भमानी देवतात्मा जीवोऽभवद् इत्यर्थः । एतच्चाथवणोत्तरतापनीयस्पष्ट मुक्तम् । सवा एप भूतानि इन्द्रियाणि विराजं देवताः कोशांश्च सृष्ट्वात्र प्रविष्टः इव विहरति ।" __अर्थात्-"सर्व वेदान्त प्रन्यास ज्ञातव्य ब्रह्म अपनी मायासे ब्रह्माण्डरूप विराट देह रचकर उसमें जीवरूपसे प्रविष्ट होकर ब्रह्माण्ड अभिमानी देव जीव बन गया। यह भूतरूपी इन्द्रियोंकी तथा अन्नमय प्राणमय आदि कोशीको रचकर उसमें प्रविष्ट हुआ . सा विचरता है।" शुद्ध ब्रह्मको जीव क्यों बनना पड़ा इसका स्तर तो आज तक किसीने नहीं दिया ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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