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________________ ( २६६ ) आप ह यद्वृहत विश्वमायन् गर्भ दधाना जनयन्तीरग्निम् ततो देवानां समवर्तता सुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ७ ॥ चिदापो महिना पश्यदक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम् यो देवेष्वधि देव एक श्रासीत् कस्मै देवाय हविषा विधेम मानो हिंसीज्जनिता यः पृथिव्या योवा दिवं सत्यधर्मा जजान यश्वापश्चन्द्रा वृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ६ ॥ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव यत् कामास्ते जुहुस्तनो अस्तुवयं स्यामपतयो रयीणाम् । १० । १- सबसे पहले केवल परमात्मा व हिरण्यगर्भ थे । उत्पन्न होने पर वह सारे प्राणियों के अद्वितीय अधीश्वरथे । उन्होंने इस पृथ्वी और आकाशको अपने-अपने स्थानोंमें स्थापित किया । उन "क" नाम वाले प्रजापति देवता की हम विके द्वारा पूजा करेंगे अथवा हम हव्यके द्वारा किस देवता की पूजा करें। २- जिन प्रजापतिने जीवात्माको दिया हैं, बल दिया है. जिन की चाज्ञा सारे देवता मानते हैं जिनकी छाया अमृत-रूपण है, और जिनके में मृत्यु उन्ह' "क" नाम वाले ... ३ - जो अपनी महिमासे दर्शनेन्द्रिय और गति शक्ति वाले जीवों के अद्वितीय राजा हुए हैं; और जो इन द्विपदों और चतुष्पदों के प्रभु हैं, उन "क" नाम वाले ' ४- जिनकी महिमा से ये सब हिमाच्छन पर्वत उत्पक्ष हुए हैं,
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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