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। ६६२ । यदरोदीत् ( प्रजापतिः ) सदनयोः द्यावापृथिच्योः रोदस्त्यम् । ते. शहा
यावा पृथिवीको बनाकर इसके गिरनेके भयसे प्रजापति रोया, क्योंकि प्रजापति रोया अतः इनका नाम रोदसी हुमा ।
(अथर्ववेद का ४ । १ १ ४ में भी यही लिखा है )
यह सिद्ध है कि वैदिक साहित्यमें (प्रजापति) इत्यादि शब्दोंका अर्थ वर्तमान ईश्वर नहीं है।
अपिशु वैदिक वांगमयमें उपरोक्त प्र में ही अझापनि प्राष्ट्रि शब्दोंका प्रयोग हुआ है। साथ श्वेताश्वतर उपनिषदमें लिखा है कि...
"हिरण्यगर्भ पश्यतः जायमानम् । हिरण्यगर्भ जनयामासपूर्वम् ।" ___ अर्थात्-उत्पन्न होते हुये हिरण्यगर्भको देखो । तथा प्रथम हिरण्यगर्भको उत्पन्न किया।
लिंग शरीर यजुर्वेद. श्र. २७ मन्त्र २५ के भाष्यमें, प्राचार्य ध्वट व महीधरने "हिरण्य गर्भक अर्थ लिंग-शरीर' किये हैं। इससे वैदिक साहित्यमें जितने भी सृष्टि, उत्पत्ति विषयक कथन हैं उन सबका रहस्य प्रकट हो जाता है। हम इसको वहीं विस्तार पूर्वक लिचेंगे।