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________________ यहाँ माध्यकार लिखते हैं कि"प्रजापतिर्विप्रः ६६ विश्विदेत्युच्यो" अर्थात्-प्रजापति विप्रको विपश्चित् कहते हैं। अतः यहाँ विद्वान् साक्षणका नाम प्रजापति है। क्षत्री--प्रजापति वै चत्रम् । श० ८।२।३।११ एक-जापते 4 एकः : ते० ३।८।१६१ यहाँ पकका नाम प्रजापति है। तद् यदववीत् ( ब्रह्मा ) प्रमापतेः प्रजा सटा पालयस्वेति, तस्मात्प्रजापतिरभवत् सत्प्रजापतेः प्रजापतित्वम् । . मो० पू० १४ सृष्टि रचकर प्रमाने प्रजापतिसे कहा कि इसका पालन करी, इससे वह प्रजापति हुश्रा यही प्रजापतिका प्रजापतित्व है । मझा प्रजापतिका मन है। : षोडशकला अर्थ य एतदन्तरे प्राणः संचरति स एव सप्तदश प्रजापतिः । श. १०।४।१।१७ षोडशकला प्राण (जो कि शरीरमें संचरित है) तथा सतरहवाँ प्रजापति, (आत्मा) है। प्रजापतिः सर्वाणि भूतानि सृष्ट्वा रिरिचान इव मेने समृत्यो विमयां चकार । श० ११४।२।२ इन सब भूतों (इन्द्रियों) को रचकर प्रजापति (आत्मा) मृत्यु से भयभील हुआ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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