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( ५२२ ) 'इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते ।
मनुष्यमें जिस प्रकार चतन आत्माका अचेनन शरीरसे संयोग शास्त्रसम्मत है. उसी प्रकार देवता भी आत्म-शरीरसंयोग है । देवनामें भा मनुष्कं समान देह-देहि-भाव होता है।
जिस प्रकार मनुष्य अपनी श्रायु के अन्त में एक शरीरका त्याग कर दूसरा बाहर का है. इसी देवता भी अपनी श्रायुके अन्त में एक शरीरका त्यागकर दूसरा शरीर ग्रहण-करता है। देव-शोरमें मनुष्य शरीरके समान हानापादान होते हैं । मीताके-- ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोक विशाल
क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति | इस वचन से मनुष्य का देव-शरीर ग्रहण और देवता का मनुष्य-शरीर-ग्रहण करना सिद्ध है।
देव-शरीर का आकार देखने में मनुष्य-शरीर के सदृश्य होना है । यास्कने
'अथाकाचा देवानाम' कहकर. चार विभिन्न मनोका प्रदर्शन करते समय, देवताओं को पुरुषविधताका सर्वप्रथम उल्लेख किया है
'पुरुषविधाः स्युरित्येकम्'
देव-शरीरसे ईश्वर-शरीरमें बैलक्षण्य ईश्वरका शरीर देव-शारके ममान तेजोमत्र, भौतिक और