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( २१६ ) देवता और ईश्वर
(ले०- श्रीमान नी भारद्वाज, प्रा. ए., आचार्य, माहित्यरत्न)
( १) मनुष्य-शरीरसे देव-शगिरमें चैलक्षण्य . हिंदु-शासनके अनुसार मानव शरीर और देवशरीर दोनों __ पाश्चभौतिक होते हैं। प्री-नत्वको प्रचारनाक कारण मानव
शरीर पार्थिव' कहा जाता है, किन्तु देव-शरीर तेजस्तत्वकी प्रधानताकं कारण तेजस' कहा जाता है ।
देव-शरीर और मानव-शरीर दोनों ही कर्मानुसार मिलते हैं, किन्तु मानव-शरीर श्रीमद्भागवतके--
कर्मणा देवनेत्रेण अन्तुहोपपत्तये । । मातुः प्रविष्ट उदरं पितू रेतःकणाश्रयः ।।
"इस वचनके अनुसार रजोवीधिनिर्मित होता है, और देवशरीर महाभारत के -
लैजसानि शरीराणि भवन्त्यत्रापपद्यताम् । . कर्मजान्येव मौद्गल्य न मातृपितृजान्युत ।। . इस वचनके अनुसार रजोवीर्यविनिर्मित नहीं होता। पार्थिव मानव-शरीरम खान-पानके परिणामरूप. स्वेद. मूत्र और पुरीष होते हैं. किन्तु जम देव-शरीरमें ये नहीं होते। देवनाको नजस शरीरधारी हानके कारण भूख-प्यास नहीं लगती--